धर्म भी सिखाते हो, कर्म भी बताते हो,
सुदर्शन चक्र भी उठाते हो,
बाँसुरी भी बजाते हो।
कभी राजनीति, कभी प्रीती,
कभी रण, कभी रास,
प्रेम भी करते हो, निर्मोही भी हो जाते हो,
संसार से जुड़कर भी, सांसारिक नहीं बन जाते हो,
सागर में गोते लगाकर भी, भीग नहीं जाते हो।
ओ कान्हा, ओ कृष्णा, बस यही है सवाल,
क्या मुझे भी सिखा दोगे ये कमाल ?
शैल
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